मुक्ति जो जीते जी मुक्त रहा है सच कहूँ तो मरने के बाद भी वही मुक्त हो सकता है। जो यहाँ नहीं मुक्त रहा वो वहाँ कैसे मुक्त रहेगा? मुक्त रहने का मतलब सब छोड़-छाड़ कर भाग जाना नहीं होता। ये मुक्ति का स्वरूप नहीं है। आप सबसे पहले ये विचार करिए आप अपनी चेतना में क्रोध से कितने मुक्त हैं? आप काम से कितना मुक्त हैं? आप लोभ से कितना मुक्त हैं? ये सब जरूरी है पर ये आपके कन्ट्रोल में है या आप इनके कंट्रोल में है? जो अभी मुक्त है वो सदैव मुक्त है। मुक्त व्यक्ति का स्वभाव क्या है? he never react he always respond. हम अपने जीवन में सदैव रिएक्ट करते रहते हैं respond नहीं करते। कोई पूछ ले- रो क्यों रहा है? वो रुला गया। हँस क्यों रहा है? वो हँसा गया। सो क्यों रहा है? वो सुला गया। जग क्यों रहा है? वो जगा गया। हमारा जीवन ऐसा है हम जिससे मिलते हैं उसके सा...
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Showing posts from June, 2021
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एक सेठ जी थे, जो दिन-रात अपना काम-धँधा बढ़ाने में लगे रहते थे। उन्हें तो बस, शहर का सबसे अमीर आदमी बनना था। धीरे-धीरे ही सही पर आखिरकार वे नगर के सबसे धनी सेठ बन ही गए। इस सफलता की ख़ुशी में उन्होने एक शानदार घर बनवाया। गृह प्रवेश के दिन, उन्होने एक बहुत शानदार पार्टी का आयोजन किया। जब सारे मेहमान चले गए तो वे भी अपने कमरे में सोने के लिए चले आए। थकान से चूर, जैसे ही बिस्तर पर लेटे, एक आवाज़ उन्हें सुनायी पड़ी.. मैं तुम्हारी आत्मा हूँ और अब मैं तुम्हारा शरीर छोड़ कर जा रही हूँ ! सेठ घबरा कर बोले, अरे ! तुम ऐसा नहीं कर सकती , तुम्हारे बिना तो मैं मर ही जाऊँगा। देखो, मैंने वर्षों के तनतोड़ परिश्रम के बाद यह सफलता अर्जित की है। अब जाकर इस सफलता को आमोद प्रमोद से भोगने का अवसर आया है। सौ वर्ष तक टिके, ऐसा मजबूत मकान मैने बनाया है। यह करोड़ों रूपये का, सुख सुविधा से भरपूर घर, मैंने तुम्हारे लिए ही तो बनाया है! तुम यहाँ से मत जाओ। आत्मा बोली, "यह मेरा घर नहीं है, मेरा घर तो तुम्हारा शरीर था, स्वास्थ्य ही उसकी मजबूती थी, किन्तु करोड़ों कमाने के चक्कर में, तुमने इसके र...
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[3:19 pm, 30/06/2021] Jitendra Agarwalla: 👉🏼बुढ़ापा और अकेलापन👈🏼 रामदास और उसके बेटे मोहन का एक शिक्षाप्रद प्रसंग हम में से कौन रामदास है और कौन मोहन यह विचार करना ।। रामदास :- बेटा, मैं तुम्हारे काका के घर जा रहा हूँ मोहन:- क्यों पिताजी?? आप आजकल काका के घर बहुत जा रहे हो। पिताजी ! लो ये पैसे रख लो , काम आएंगे। पिताजी का मन भर आया। उन्हें आज अपने बेटे को दिए गए संस्कार लौटते नजर आ रहे थे । जब मोहन स्कूल जाता था। वह पिताजी से जेब खर्च लेने में हमेशा हिचकता था, क्यों कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। पिताजी मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से घर चला पाते थे। पर माँ फिर भी उसकी जेब में कुछ सिक्के डाल देती थी, जबकि वह बार-बार मना करता था। मोहन की पत्नी का स्वभाव भी उसके पिताजी की तरफ कुछ खास अच्छा नहीं था। वह रोज पिताजी की आदतों के बारे में कहासुनी करती थी। उसे ये बडों से टोका टाकी पसन्द नही थी। बच्चे भी दादा के कमरे में नहीं जाते और मोहन को भी देर से आने के कारण बात करने का समय नहीं मिलता था। एक दिन मोहन ने पिताजी का पीछा किया, आखिर पिताजी को काका के घर जाने की...
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Dear Friends, It has been an enthralling task and a boundless bounty of blessings from my own Guru Shri Shri Indranath Chakrabortyji Maharaj to first read and then be able to explain this most powerful of all books in the universe. Every friday 6:30 To 8:30 PM IST Lahiri Mahashay's SRIMAD BHAGWAT GITA as written by Yogi Guru Shri Shri Bhupendra Nath Sanyal Maharaj is read and explained live on the net. This is a unique take on the Gita not found elsewhere.The explanations are absolutely unheard of elsewhere, completely scientific and completely captivating. By my master's blessings I expect we will be successful in bringing God's own words live; home to all of you who are so inclined. Please send me your comments/ suggestions/compliments afterwards.
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STRAY THOUGHTS 8/14 By my Guru's grace, I am watching the serial Mahabharat on the telly, and certain extraordinary hidden aspects are being revealed by Him. Some of these I have shared with you in the recent past through STRAY THOUGHTS. In one of my Gita sessions in Kolkata on the last Friday, a question was raised by someone in the audience. It was sudden it was intense and yet it was perfectly natural. Q: WHEN Karn was a Kunti offspring, how could he possibly go astray as he did? I was taken aback and surprised but my Guru Maharaj sent the answer in A flash, like the magic He showers on me, couched as His kripa. Kunti is "avahan ki shakti", this shakti is available in the kutashth {Pandu}. Shakti or force is usually depicted as the wife of the controller in our shashtras. But ...
Impediment to our quest
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Even if we wish to, there are a lot of impediments to our quest for the Almighty. Why? Dear Friends A close friend and a good kriyayogi once asked me a question on the subject above, today. This makes me very happy indeed, as it shows in one go, the churning of the juices in the brain and the utility of the Stray Thoughts series. We have seen and some have felt rather acutely, others a little mildly that the greatest critics of all our actions are our spouses. It would be serious mistake to treat them as impediments or hindrances, for they are not that at all. A car needs both the accelerator and the brake as well; I often say. Just imagine the great potential for disaster that a car without brakes would have. Goswami Tulsidas has said “निंदक निअरे राखिये कुटी आँगन छवाय ". The Almighty has provided the nindak in the shape of our spouse and no need for the kutia in the aangan as well. I recall a true story related by my Param Gurudev Tiwari Baba to my Gurudev: La...