श्रीहरिः।।


मीरा बाईसा के  आखिरी पल:-

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द्वारिकाधीश की मंगला आरती हो चुकी थी और पुजारी जी द्वार के पास खड़े थे। दर्शनार्थी दर्शन करते हुये आ जा रहे थे ।राणावतों और मेड़तियों के साथ मीरा मंदिर के परिसर में पहुँची ।मीरा ने प्रभु को प्रणाम किया ।

पुजारी जी मीरा को पहचानते थे और उन्हें यह विदित था कि इन्हें लिवाने के लिए मेवाड़ के बड़े बड़े सामन्तों सहित राजपुरोहित आयें है ।चरणामृत और तुलसी देते हुये उन्होंने पूछा -" क्या निश्चित किया ? क्या जाने का निश्चय कर लिया है ? आपके बिना द्वारिका सूनी हो जायेगी ।" 


" हाँजी महाराज ! वही निश्चित नहीं कर पा रही !! अगर आप आज्ञा दें तो भीतर जाकर प्रभु से ही पूछ लूँ !!!" 


" हाँ हाँ !! पधारो बा !! आपके लिए मन्दिर के भीतर जाने में कोई भी बाधा नहीं !!!"-पुजारी जी ने अतिशय सम्मान से कहा।

पुजारी जी की आज्ञा ले मीरा मन्दिर के गर्भगृह में गई ।ह्रदय से प्रभु को प्रणाम कर मीरा इकतारा हाथ में ले वह गाने लगी........


मीरा को प्रभु साँची दासी बनाओ।

झूठे धंधों से मेरा फंदा छुड़ाओ॥


लूटे ही लेत विवेक का डेरा।

बुधि बल यदपि करूं बहुतेरा॥


हाय!हाय! नहिं कछु बस मेरा।

मरत हूं बिबस प्रभु धाओ सवेरा॥


धर्म उपदेश नितप्रति सुनती हूं।

मन कुचाल से भी डरती हूं॥


सदा साधु-सेवा करती हूं।

सुमिरण ध्यान में चित धरती हूं॥


भक्ति-मारग दासी को दिखलाओ।

मीरा को प्रभु सांची दासी बनाओ॥


अंतिम पंक्ति गाने से पूर्व मीरा ने इकतारा मंगला के हाथ में थमाया और गाती हुईं धीमें पदों से गर्भ गृह के भीतर वह ठाकुर जी के समक्ष जा खड़ी हुईं। वह एकटक द्वारिकाधीश को निहारती बार बार गा रही थी -" मिल बिछुरन मत कीजे ।"  

एकाएक मीरा ने देखा कि उसके समक्ष विग्रह नहीं ब्लकि स्वयं द्वारिकाधीश वर के वेश में खड़े मुस्कुरा रहे है। मीरा अपने प्राणप्रियतम के चरण स्पर्श के लिए जैसे ही झुकी , दुष्टों का नाश , भक्तों को दुलार , शरणागतों को अभय और ब्रह्माण्ड का पालन करने वाली सशक्त भुजाओं ने आर्त ,विह्वल और शरण माँगती हुई अपनी प्रिया को बन्धन में समेट लिया |


जय-जय मीरा गोपाल 


क्षण मात्र के लिए एक अभूतपूर्व प्रकाश प्रकट हुआ , मानों सूर्य -चन्द्र एक साथ अपने पूरे तेज़ के साथ उदित होकर अस्त हो गये हों ।

इसी प्रकाश में प्रेमदीवानी मीरा समा गई 


जय-जय मीरा गोपाल 


उसी समय मंदिर के सारे घंटे -घड़ियाल और शंख स्वयं ज़ोर ज़ोर से एक साथ बज उठे। कई क्षण तक वहाँ पर खड़े लोगों की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ ।

एकाएक चमेली " बाईसा हुकम " पुकारती मंदिर के गर्भ गृह की ओर दौड़ी। पुजारी जी ने सचेत होकर हाथ के संकेत से उसे रोका और स्वयं गर्भ गृह में गये ।उनकी दृष्टि चारों ओर मीरा को ढूँढ रही थी ।अचानक प्रभु के पाशर्व में लटकता भगवा -वस्त्र खंड दिखाई दिया। वह मीरा की ओढ़नी का छोर था। लपक कर उन्होंने उसे हाथ में लिया ।पर मीरा कहीं भी मन्दिर में दिखाई नहीं दी ।निराशा के भाव से भावित हुए पुजारी ने गर्भ गृह से बाहर आकर न करते हुए सिर हिला दिया। उनका संकेत समझ सब हतोत्साहित एवं निराश हो गये । 


" यह कैसे सम्भव है ? अभी तो हमारे सामने उन्होंने गाते हुये गर्भ गृह में प्रवेश किया है ।भीतर नहीं हैं तो फिर कहाँ है ? हम मेवाड़ जाकर क्या उत्तर देंगें। "- वीर सामन्त बोल उठे ।

" मैं भी तो आपके साथ ही बाहर था ।मैं कैसे बताऊँ कि वह कहाँ गई ? 

स्थिति से तो यही स्पष्ट है कि मीरा बाई प्रभु में समा गई , उनके विग्रह में लीन हो गई। " पुजारी जी ने उत्तर दिया। 


पर चित्तौड़ और मेड़ता के वीरों ने पुजारी जी की आज्ञा ले स्वयं गर्भ गृह के भीतर प्रवेश किया। दोनों पुरोहितों ने मूर्ति के चारों ओर घूम कर मीरा को ढूँढने का प्रयास किया ।


सामन्तों ने दीवारों को ठोंका , फर्श को भी बजाकर देखा कि कहीं नीचे से नर्म तो नहीं !! अंत में जब निराश होकर बाहर निकलने लगे तो पुजारी ने कहा ," आपको बा की ओढ़नी का पल्ला नहीं दिखता , अरे बा प्रभु में समा गई है। " 


दोनों पुरोहितों ने पल्ले को अच्छी तरह से देखा और खींचा भी , पर वह तनिक भी खिसका नहीं , तब वह हताश हो बाहर आ गये ।


इस समय तक ढोल - नगारे बजने आरम्भ हो गये थे ।पुजारी जी ने भुजा उठाकर जयघोष किया -" बोल , मीरा माँ की जय ! द्वारिकाधीश की जय !!


 भक्त और भगवान की जय !!! " 


लोगों ने जयघोष दोहराया -जय-जय मीरा गोपाल 


तीनों दासियों का रूदन वेग मानों बाँध तोड़कर बह पड़ा हो। अपनी आँखें पौंछते हुये दोनों पुरोहित उन्हें सान्तवना दे रहे थे ।इस प्रकार मेड़ता और चित्तौड़ की मूर्तिमंत गरिमा अपने अराध्य में जा समायी


नृत्यत नुपूर बाँधि के गावत ले करतार,

देखत ही हरि में मिली तृण सम गनि संसार ॥

मीरा को निज लीन किय नागर नन्दकिशोर ,

जग प्रतीत हित नाथ मुख रह्यो चुनरी छोर ॥


दोनों की साध पूरी हुयी, न जाने कितने जन्मों की प्रतीक्षा के बाद। आत्मा और परमात्मा का मिलन


दो होकर एक एक होकर दो 

जय श्री मीरा माधव जी..........


हे नाथ!हे मेरे नाथ!!आप बहुत ही कृपालु हैं!!!


🙏जय जय श्रीराधेकृष्ण🙏

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