मुक्ति

 जो जीते जी मुक्त रहा है सच कहूँ तो मरने के बाद भी वही मुक्त हो सकता है। जो यहाँ नहीं मुक्त रहा वो वहाँ कैसे मुक्त रहेगा? मुक्त रहने का मतलब सब छोड़-छाड़ कर भाग जाना नहीं होता। ये मुक्ति का स्वरूप नहीं है। 


आप सबसे पहले ये विचार करिए आप अपनी चेतना में क्रोध से कितने मुक्त हैं? आप काम से कितना मुक्त हैं? आप लोभ से कितना मुक्त हैं? ये सब जरूरी है पर ये आपके कन्ट्रोल में है या आप इनके कंट्रोल में है? 


जो अभी मुक्त है वो सदैव मुक्त है। 


मुक्त व्यक्ति का स्वभाव क्या है? he never react he always respond. हम अपने जीवन में सदैव रिएक्ट करते रहते हैं respond नहीं करते। कोई पूछ ले- रो क्यों रहा है? वो रुला गया। हँस क्यों रहा है? वो हँसा गया। सो क्यों रहा है? वो सुला गया। जग क्यों रहा है? वो जगा गया।


हमारा जीवन ऐसा है हम जिससे मिलते हैं उसके सामने अपना रिमोट रख देते हैं तू बटन दबा। वो दबाता है प्रशंसा का बटन तो यहाँ लग जाता है प्रसन्नता का चैनल। वो दबाता है निंदा का बटन तो यहाँ तुम भी आग बबूला हो जाते हो। 

भाई तुम्हारा टीवी है तो अपने पास अपना रिमोट रखो दूसरे के पास क्यों रखते हो? 


मुक्त व्यक्ति का इतना व्यवहार होता है तुम्हारा मन है तो तुम्हारा व्यवहार चलना चाहिए दूसरे का नहीं चल सकता। 


।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।

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